( सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी: लोकतंत्र पर काला धब्बा, तानाशाही का प्रतीक )
नई दिल्ली, 29 सितंबर 2025: लद्दाख के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी न केवल निंदनीय है, बल्कि यह पूरे देश में व्याप्त तानाशाही प्रवृत्ति का जीता-जागता प्रतीक बन चुकी है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत 26 सितंबर को हुई इस गिरफ्तारी ने न केवल लद्दाख की शांतिपूर्ण आंदोलनकारी आवाज को कुचल दिया है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी गहरी चोट पहुंचाई है। आदर्श संग्राम पार्टी (एएसपी) के संस्थापक अध्यक्ष गौतम भारती ने इस कृत्य की कड़ी निंदा करते हुए केंद्र सरकार से तत्काल सोनम वांगचुक को रिहा करने की मांग की है। उन्होंने कहा, "यह गिरफ्तारी लोकतंत्र की हत्या है। हमारी पार्टी मध्यम वर्ग के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, और इस तरह के दमनकारी कदमों का डटकर मुकाबला करेंगे।"
सोनम वांगचुक, जो लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची के तहत पर्यावरणीय सुरक्षा प्रदान करने की मांग को लेकर वर्षों से शांतिपूर्ण संघर्षरत हैं, ने हाल ही में 14 दिनों की भूख हड़ताल की थी। यह आंदोलन लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी, स्थानीय निवासियों के रोजगार अधिकारों और सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़ा हुआ था। लेकिन 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसक झड़पों के बाद—जिसमें चार नागरिकों की मौत और दर्जनों घायल होने की खबरें आईं—सरकार ने वांगचुक को हिंसा भड़काने का दोषी ठहरा दिया। आंतरिक मंत्रालय ने उनके भाषणों को "उत्तेजक" बताते हुए उनकी एनजीओ—स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सेकमोल)—का लाइसेंस रद्द कर दिया। लेकिन क्या शांतिपूर्ण विरोध को दबाने के लिए एनएसए जैसे कठोर कानून का सहारा लेना उचित है? वांगचुक की पत्नी गीतांजली अंगमो ने कहा, "हम भारत और सत्य के साथ हैं, लेकिन राष्ट्रीय मशीनरी का इस्तेमाल उनकी छवि खराब करने के लिए किया जा रहा है।"
यह घटना केवल लद्दाख तक सीमित नहीं है; यह पूरे देश में बढ़ते दमन का आईना है। लद्दाख, जो 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बना, तब से ही स्थानीय मांगों को लेकर उपेक्षित महसूस कर रहा है। वांगचुक का आंदोलन जनजातीय अधिकारों, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हिमालयी पारिस्थितिकी और नौकरियों में स्थानीय आरक्षण की मांग करता रहा है। लेह के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने गिरफ्तारी की एकजुट निंदा की है। लेह सांसद हाजी हनीफा ने कहा, "यदि शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए गिरफ्तारी हो रही है, तो हम इसे अस्वीकार करते हैं।" कर्गिल में बंद का आयोजन किया गया, जबकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) समर्थकों ने मोमबत्ती जुलूस निकालकर एकजुटता दिखाई।
आदर्श संग्राम पार्टी के अध्यक्ष गौतम भारती, जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं और 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, ने इस मुद्दे को मध्यम वर्ग के संघर्ष से जोड़ा। एएसपी, जो मध्यम वर्ग परिवारों के लिए निःशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य और सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखती है, ने वांगचुक की रिहाई के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ने का ऐलान किया है। भारती ने कहा, "सोनम वांगचुक जैसे कार्यकर्ता देश के विवेक की आवाज हैं। उनकी गिरफ्तारी से साबित होता है कि सरकार असहमति को सहन नहीं कर सकती। हम केंद्र से मांग करते हैं कि तुरंत उन्हें रिहा किया जाए, अन्यथा हम सड़कों पर उतरेंगे।" पार्टी की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर चल रहे 'मिडल क्लास विजय अभियान' को इस मुद्दे से जोड़ते हुए भारती ने युवाओं से एकजुट होने का आह्वान किया।
यह गिरफ्तारी तब हुई जब लद्दाख एपेक्स बॉडी (एलएबी) की एक प्रतिनिधि टोली 29 सितंबर को दिल्ली में राज्य की मांगों पर बातचीत के लिए रवाना होने वाली थी। क्या यह संयोग है या सरकार की रणनीति? लद्दाख डीजीपी एस.डी. सिंह जमवाल ने गिरफ्तारी का बचाव करते हुए पाकिस्तान से कथित लिंक की जांच का जिक्र किया, लेकिन कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। पर्यावरणविदों और मानवाधिकार संगठनों ने इसे 'विच हंट' करार दिया है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने कहा, "यह मोदी सरकार का दमनकारी एजेंडा उजागर करता है।"
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी हमें सोचने पर मजबूर करती है: क्या लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध को अपराध माना जाएगा? लद्दाख की बर्फीली वादियों से लेकर दिल्ली की सड़कों तक, यह संघर्ष जारी रहेगा। आदर्श संग्राम पार्टी जैसे संगठन इस लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। सरकार को चाहिए कि वह संवाद का रास्ता अपनाए, न कि दमन का। सोनम वांगचुक को रिहा करो—यह न केवल न्याय की मांग है, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प भी।